छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों का मुख्य त्यौहार तीजा तिहार आज है. क्या आपको पता है कि तीजा त्यौहार क्यों, कब और कैसे मनाया जाता है. अगर नहीं तो आज हम आपको बताएंगे तीजा त्यौहार का क्या महत्व है और इसे क्यों और कैसे मनाया जाता है. यह त्यौहार भादो माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है. तृतीया होने के कारण इसको तीजा कहते हैं. पोरा तिहार के तीसरे दिन मनाने के कारण भी इसे तीजा कहा जाता है. तीजा के दिन महादेव और माता गौरा की निर्जला व्रत के साथ पूजा करने का विधान है.
कैसे होती है तीजा की शुरुआत
तीजा पर्व की शुरुआत करूभात से होती है जो बहुत ही कड़वा होता है. इस पर्व में करेले का विशेष महत्व होता है जो माताएं विशेषकर बनाती हैं. तीजा उपवास के एक दिन पहले माताएं एक दूसरे के घर जाकर दाल-भात और अन्य चीजों क साथ करेला की सब्जी जरूर खाती हैं जिसे करू भात कहा जाता है. ये व्रती महिलाओं को कम से कम तीन घर खाना होता है. करेला कड़वा होते हुए भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है. करेले की तासीर ठंडी होती है जो उपवास के दौरान शरीर में पित्त बढने नहीं देता. साथ ही करेला खाने से प्यास कम लगती है जो उपवास के लिए मददगार होता है. करेला जीवन में कड़वी सच्चाई का प्रतीक है जिसको जानकर और सुधारकर हम अपने जीवन की नैया चला सकते हैं.
पूजा कर रखती हैं उपवास
इस दिन स्त्रियां सुबह-सुबह नदी और तालाबों में जाकर मुक्कास्नान करती हैं. मतलब इस वक्त महिलाएं स्नान और पूजन तक किसी से बात नहीं करती हैं. नीम, महुआ, सरफोंक, चिड़चिड़ा लटकना आदि से दातुन करती हैं. साबुन की जगह तिली, महुआ की खल्ली, डोरी खरी तिली का इस्तेमाल करती हैं. महुवा का तेल निकल जाने के बाद बचे अवशेष को खल्ली कहा है. खल्ली, हल्दी और आंवले की पत्तियों को पीसकर उबटन बनाकर प्रयोग किया जाता है. जो शरीर को कोमल और चमकदार बनाती है. काली मिट्टी से बाल धोती है. स्नान करने के बाद नदी की बालू मिट्टी या तालाब के पास कुंवारी मिट्टी को खोदकर टोकरी में लाती है. इस कुंवारी मिट्टी से भगवान महादेव और माता गौरा की प्रतिमा का निर्माण कर फुलेरा में रखती हैं. फुलेरा अर्थात फूलो से भगवान का मंदिरनुमा मंडप बनाया जाता है जिसे छत्तीसगढ़ी में फुलेरा कहा जाता है. भगवान का पूजन विभिन्न प्रकार के व्यंजनों जैसे ठेठरी, खुरमी, कतरा, पूड़ी का भोग और फुल दीप धूप से कर माता गौरी को श्रृंगार भेंट करती हैं. भजन पूजन द्वारा रात्रि जागरण कर अपने पति की लंबी आयु की कामना कर पूरे दिन और रात निर्जला (बिना जल के) उपवास रखती हैं.
तीसरे दिन कैसे करें पूजा
तीसरे दिन स्त्रियों को सुबह उठकर स्नान करने के बाद भाईयों, माता-पिता द्वारा उपहार स्वरूप साड़ी सिंगार का जो समान दिया जाता है वह पहनकर भगवान महादेव और माता गौरा की मिट्टी की प्रतिमा का पूजन करती हैं. इसके बाद विसर्जन करने नदी और तालाबों में जाती हैं. विसर्जन करने के बाद सबसे पहले सूजी या सिंघाड़े या तीखुर का कतरा कुछ ऋतुफल खाकर पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं. सभी बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेती हैं. अपने निमंत्रित परिवारजनों में तीजा का फलाहार करने जाती हैं जिसमें पकवान और भोजन शामिल होता है. परिवारजन उन्हें आशीर्वाद के साथ यथाशक्ति उपहार में श्रृंगार साड़ी का उपहार या पैसे देते हैं.