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क्षेत्र क्रमांक 14 में बदलाव की मांग, विकास के लिए ऋषिकान्त बेहतर विकल्प

क्षेत्र क्रमांक 14 में बदलाव की मांग, विकास के लिए ऋषिकान्त बेहतर विकल्प

ग्राम चौपाल में गूंजा जनता का सवाल — कब होगा विकास?

आगामी जिला पंचायत चुनावों में क्षेत्र क्रमांक 14 के मतदाता बदलाव की मांग कर रहे हैं। इस बार जनता किसी नए, ऊर्जावान और विकासोन्मुख नेता को चुनावी मैदान में देखना चाहती है। क्षेत्र में लंबे समय से नेतृत्व कर रहे नेताओं के प्रति जनता में गहरी नाराजगी है, क्योंकि अब तक कोई ठोस विकास कार्य नहीं हो पाया है।

ऋषिकांत कुम्भकार: एक योग्य विकल्प

बदलाव की इस मांग के बीच ऋषिकांत कुम्भकार का नाम एक संभावित दावेदार के रूप में चर्चा में है। ऋषिकांत कुम्भकार ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और जनसेवा के प्रति समर्पण के कारण क्षेत्र में अपनी मजबूत पहचान बनाई है। उनकी छवि एक ईमानदार, परिश्रमी, और जमीनी हकीकत से जुड़े नेता की है।

ग्रामीणों का कहना है कि ऋषिकांत कुम्भकार ने हमेशा जनता की समस्याओं को अपनी प्राथमिकता दी है। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, और सड़क विकास जैसे मुद्दों पर सक्रिय रहे हैं। पवनतरा के एक निवासी ने कहा, “ऋषिकांत कुम्भकार जैसे नेताओं की जरूरत है जो केवल वादे नहीं करते, बल्कि काम करके दिखाते हैं।”

पुराने चेहरे, अधूरे वादे

क्षेत्र के मतदाताओं का कहना है कि अब तक जितने भी नेता चुने गए, उन्होंने जनता से कई वादे किए, लेकिन ज़मीनी हकीकत में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ। सड़क, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य सुविधाएं, और शिक्षा के क्षेत्र में समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। ऐसे में ऋषिकांत कुम्भकार को जनता एक ऐसे नेता के रूप में देख रही है जो विकास के नए द्वार खोल सकते हैं।

विविधता और समावेशिता की जरूरत

ऋषिकांत कुम्भकार की एक और खासियत यह है कि वे हर वर्ग और समाज के साथ जुड़ाव रखते हैं। वे समावेशी विकास में विश्वास करते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं कि समाज के हर तबके को समान अवसर मिले। ग्रामीणों का कहना है कि अगर उन्हें मौका दिया जाता है, तो वे क्षेत्र के विकास को नई गति देंगे।

क्या मिलेगा नया विकल्प?

अब देखना यह होगा कि राजनीतिक दल ऋषिकांत कुम्भकार जैसे ऊर्जावान और विकासपरक सोच वाले व्यक्ति को टिकट देते हैं या फिर पुराने चेहरे एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरेंगे।

क्षेत्र क्रमांक 14 में इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प हो सकता है। विकास की उम्मीदों और बदलाव की चाहत ने इसे चर्चा का विषय बना दिया है। जनता की मांग का राजनीतिक दलों पर क्या असर पड़ता है, यह आने वाला समय ही बताएगा।

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